नई दिल्ली: एससी/एसटी ऐक्ट को फिर से सख्त बनाने के संसद के कानून को चुनौती देने वाली याचिका सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है। इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके 6 हफ्ते में जवाब मांगा है। इस संशोधित कानून पर रोक लगाने की मांग की गई, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दूसरे पक्ष को सुने बिना रोक लगाना सही नहीं है। एससी/एसटी ऐक्ट के विरोध में सवर्णों के आंदोलन के बीच यह घटनाक्रम सामने आया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च को इस कानून के तहत तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी और जांच के बाद ही गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। लेकिन संसद ने कानून बनाकर पुराने प्रावधानों को बहाल कर दिया था।
बदलाव खारिज करने की मांग: वकील परासरन ने कहा कि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार कर दिया और कानून में संशोधन कर पहले जैसी स्थिति बरकरार कर दी। ऐसे में केंद्र सरकार ने कानून में जो बदलाव किया है, उसे खारिज किया जाए और सर्वोच्च न्यायालय के 20 मार्च के फैसले को बहाल किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय में प्रिया शर्मा, पृथ्वी राज चौहान और अन्य की ओर से एससी-एसटी ऐक्ट 2018 को चुनौती दी गई है।
केंद्र से 6 हफ्ते में मांगा जवाब
शुक्रवार को न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी और अशोक भूषण की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि केंद्र 6 हफ्ते में जवाब दाखिल करे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने फिलहाल नए कानून पर स्टे की मांग की, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस मांग को ठुकरा दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जब तक दूसरे पक्ष का स्टैंड नहीं सुना जाएगा, तब तक मामले में आदेश पारित नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता के वकील मोहन परासरन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च को आदेश दिया था और इसमें एससी-एसटी ऐक्ट के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान किया गया था।
एससी/एसटी ऐक्ट के विरोध में हाल में सवर्णों ने आंदोलन किया था।