मुंबई : मुसलमानों के आखिरी पैगम्बर (संदेश वाहक) के नवासे की शहादत के गम में शुक्रवार को शहर भर में जगह-जगह जुलूस निकाले गए। मुहर्रम की 10 तारीख (आशूरा) को हर साल इमाम हुसैन की याद में ये जुलूस निकाले जाते हैं। जुलूसों में ‘या हुसैन’, ‘या अली’ के नारे लगाए गए और आह व चीखों से पूरा माहौल गमगीन हो गया। निकाले गए जुलूसों में लाखों लोग शामिल हुए। आशूरा से पहले, पिछले 9 दिनों में भी शहर के कई शिया मुस्लिम संगठनों ने सभाएं आयोजित कीं और मातम मनाया।
पुलिस की सख्त निगरानी में अखिल भारतीय अदारा तहफ्फुज हुसैनियत का जुलूस गंभीर मातम के साथ जैनबिया मस्जिद, इमामबाड़ा से शुरू हो कर, रहमताबाद कब्रस्तान में खत्म हुआ। इस मौके पर शिया मुस्लिम संगठन की कई बड़ी शख्सियतें मौजूद थीं, जिनमें मिर्जा अशफाक, मिर्जा याकूब, मिर्जा जाफर अब्बास, सफदर करमानी के अलावा असजद नाजी और कई मौलाना मौजूद थे। इस मौके पर खुदामए सुगरा वॉलनटीर ग्रुप ने मातम में जख्मी होने वालों को ऐम्बुलेंस से अस्पताल पहुंचाकर उन्हें इलाज मुहैया कराया।
शुक्रवार की रात 9 बजे शामे गरीबां (दुखों की शाम) का आयोजन हुआ। इसमें मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि, ‘हम इस मजलिस के द्वारा कर्बला में हुसैन के साथ हुए दर्दनाक क्षणों को याद करते हैं। इस शाम में बत्तियां बुझा दी जाती हैं और लोग रो-रो कर इमाम हुसैन और उनके परिवार के साथ हुए अत्याचारों को याद करके आंसू बहाते हैं।’
आशूरा के दिन दक्षिण मुंबई के अलावा, बांद्रा-कुर्ला, गोवंडी, घाटकोपर, जोगेश्वरी, ठाणे, नवी मुंबई, पनवेल और मुंब्रा में जुलूस निकाले गए और मातमपुर्शी की।
मुंबई और ठाणे के कई मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में मुहर्रम के 10 दिनों तक सभाएं और भाषण हुए, जिनमें कर्बला के इतिहास को याद किया गया। हुसैन और उनके परिवार का पानी के लिए तरसना याद करके जगह-जगह पीने के पानी की व्यवस्था की गई और दसवें दिन लोगों में शरबत बांटा गया।