Friday, October 25metrodinanktvnews@gmail.com, metrodinank@gmail.com

केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा ने जारी किया मद्धेशिया समाज के संत गणिनाथ पर डाक टिकट

गाजीपुर, मद्धेशिया समाज के कुलगुरु संत शिरोमणि गणिनाथ पर केंद्रीय रेल व संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने रविवार को डाक टिकट जारी किया। शहर के लंका मैदान में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि संत गणिनाथ जी को अब सिर्फ मद्धेशिया समाज ही नहीं बल्कि पूरे देश का प्रत्येक समाज जानेगा। उन्होंने संत गणिनाथ के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कहा कि संत गणिनाथ के विचारों को आत्मसात कर देश व समाज के प्रगति में योगदान किया जा सकता है। संत गणिनाथ ने समाज को वेदों का अध्ययन करने, सच्चाई एवं धर्म का पालन करने, काम, क्रोध, लोभ, अभिमान एवं आलस्य को त्यागने, समाज में नारी का सम्मान और उनकी रक्षा करने पर विशेष बल दिया था।

कौन हैं संत गणिनाथ

मद्धेशिया समाज संत गणिनाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। यह अवतार भूलोक में धर्म रक्षा, मानवता का संदेश और मानवों के बीच बढ़ रही वैमनस्यता को दूर करने के लिए हुआ था। भगवान शिव के भक्त मंशाराम ग्राम महनार वैशाली में गंगा किनारे अपनी कुटिया में सपत्नी रहते थे। मंशाराम सात्विक व धार्मिक विचारों वाले थे। गृहस्थ जीवन के साथ भगवान शंकर के उपासक थे। संतानहीन होने के बावजूद उनका भगवान पर पूरा विश्वास था और वे अपने जीवन से खुश थे। इसी विश्वास व मंशाराम की भक्ति से प्रसन्न होकर भोले बाबा ने एक रात दर्शन दिया और अगले ही दिन वन में एक पीपल के पेड़ के नीचे एक अलौकिक बच्चा मिला। इसके अछ्वुत कारनामों ने मंशाराम की जिंदगी बदल दी। बाद में यही बालक राजयोग व महर्षि योग के धनी होने के कारण आगे चलकर गणिनाथ हुए।
चंदेल राजाओं में महाराजा धंग की पुत्री क्षेमा से विवाह के बाद गणिनाथ ने अपने पराक्रम से उनके राजपाट को और बढ़ा दिया। बाद में महाराजा धंग ने गणिनाथ का राज्याभिषेक कर दिया। इस बीच मुहम्मद गजनी की क्रूरता की चर्चा सुनते ही गणिनाथ ने अपने प्रतापी पुत्र विद्याधर संग गजनी को देश से खदेड़ दिया। इस बीच पलवैया में यवनों के अत्याचार की सूचना मिली। इससे निपटने के लिए भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में हार के बाद यवनों की सेना भी बाबा गणिनाथ के तपबल व योगशक्ति से इतना प्रभावित हुए कि शरणागत हो गए। इसके बाद अपने बेटे विद्याधर को राजपाट की जिम्मेवारी सौंप गणिनाथ संन्यासी वेश में खजुराहो की तरफ चले गए। वे खजुराहो से चित्रकुट, प्रयाग, अयोध्या व गोविंदधाम तक की यात्रा पूरी की व देश के कई हिस्सों में जाकर लोगों को योग, साधना, मानवसेवा व शिक्षा के प्रति जागरूक किए।

Spread the love