नई दिल्ली : भारत के 46वें चीफ जस्टिस पद की शपथ लेते हुए जस्टिस रंजन गोगोई ने अविलंब सुनवाई की परंपरा में बड़ा बदलाव किया है। चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि केसों के अविलंब उल्लेख और सुनवाई के लिए ‘मानदंड’ तय किए जाएंगे। उन्होंने इसी क्रम में कहा कि जब तक किसी को फांसी पर न चढ़ाया जा रहा हो या घर से न निकाला जा रहा हो, तो अन्य मामले अविलंब सुनवाई के लिए मेंशन नहीं किए जा सकते। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘अगर किसी को कल फांसी दी जा रही हो तब हम (अत्यावश्यकता को) समझ सकते हैं।’
चीफ जस्टिस की इस घोषणा का पहला असर ऐडवोकेट मैथ्यूज नेदुमपरा पर देखने को मिला, जो उन्हें बधाई देना चाहते थे। चीफ जस्टिस ने कहा कि चलिए आगे बढ़ते हैं, इसकी कोई जरूरत नहीं है। दूसरा असर ऐडवोकेट प्रशांत भूषण की याचिका पर पड़ा, जिसमें वह रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को भारत से निकालने के मामले को अविलंब सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कराना चाहते थे।
जस्टिस गोगोई ने जनहित याचिकाओं और अदालत को मिले पत्रों के आधार पर याचिकाओं को अपने पास रखने का फैसला किया है। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ सामाजिक न्याय, चुनाव, कंपनी कानून, दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, सेबी और भारतीय रिजर्व बैंक से संबंधित मामले भी सुनेगी। चीफ जस्टिस गोगोई ने जब कहा कि तुरंत सुनवाई की गुहार न लगाई जाए। उसके बाद भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से चुनाव सुधार के लिए अर्जी दाखिल की गई। तब चीफ जस्टिस गोगोई ने पूछा कि इस मामले में याचिकाकर्ता कौन है। अश्विनी उपाध्याय चूंकि वकील भी हैं और वकील की ड्रेस में अदालत में मौजूद थे, इसलिए उन्होंने कहा कि वह खुद ही याचिकाकर्ता हैं और वकील को सहयोग करने के लिए यहां खड़े हैं। चीफ जस्टिस का अगला सवाल था कि क्या आप याची हैं और मामले में खुद पेश होने आए हैं, तो उपाध्याय ने कहा, हां ऐसा ही है। तब चीफ जस्टिस ने कहा, ‘…अगर आप याची के तौर पर आए हैं, तो वकील की ड्रेस पहनकर जिरह कैसे कर सकते हैं/’ सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अर्जी इस आधार पर भी खारिज करने का मन बना लिया। जब उपाध्याय ने याचिका वापस लेने की गुहार लगाई, तो चीफ जस्टिस ने कहा, ‘मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं, लेकिन साथी जज तैयार हैं। ऐसे में हम याचिका वापस लेने की इजाजत देते हैं।’