मुंबई : मुंबई के जेजे अस्पताल में विश्व थ्रोम्बोसिस दिवस पर 13 अक्टूबर को हेमोफिलियी और थ्रोम्बोसिस सेंटर काम करने लगेगा। पुणे के बी.जे.मेडिकल कॉलेज और नागपुर के गवर्नर्मेंट मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल में भी इस सेंटर स्थापित किया जा रहा है।
एक दशक से अस्पतालों में थ्रोम्बोसिस के इलाज के लिए आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। लगभग 20 से 30 प्रतिशत थ्रोम्बोसिस के मरीजों का इलाज समय पर नहीं हो पाता। इसीलिए इन सेंटरों की स्थापना की जा रही है। ऐसे केंद्रों की देखरेख करने वाली हेमाटोलॉजिस्ट कंसलटेंट डॉ़ सविता रंगराजन के मुताबिक, ‘इन सेंटरों पर सिर्फ इलाज या दवा नहीं दी जाएगी, बल्कि मरीजों की बीमारियों पर रिसर्च करके खास भारतीय कोण से सभी जानकारी के साथ डेटा तैयार किया जाएगा। आगे चलकर विश्व की दूसरी संस्थाओं के साथ मिलकर हेमाटोलॉजी की जानकारी एकत्र की जा सकेगी।’ डॉ़ रंगराजन 20 वर्षों तक ब्रिटेन में प्रैक्टिस कर चुकी हैं। जे.जे. अस्पताल की असोसिएट प्रफेसर डॉ़ प्रिया पाटील ने बताया कि भारत में दिमागी थ्रोम्बोसिस ज्यादा प्रचलित जान पड़ता है। यहां से मिले ब्योरे के आधार पर इसकी प्रामाणिकता तय की जा सकेगी। इससे यह भी निर्धारित किया जा सकेगा कि यह अनुवांशिक है या पर्यावरण की वजह से बढ़ रहा है।
क्या है थ्रोम्बोसिस!
रक्त वाहिनियों में खून के जम जाने को थ्रोंम्बोसिस कहते हैं। ये खून के थक्के रक्त की आवाजाही में दिक्कत पैदा करते हैं। यही खून के थक्के दिल की धमनियों में रुकावट पैदा करके दिल के दौरे का कारण बनते हैं। मस्तिष्क की धमनियों में अगर फंस जाएं, तो ब्रेन स्ट्रोक बनकर जानलेवा हो जाते हैं। कई बार यह पैर की नसों में थमकर रुकावट बन जाते हैं। इसे मेडिकल भाषा में ‘वीनस थ्रोम्बोलिज्म’ दिया गया है। ऐसे रोगियों को पैर में दर्द रहता है और हाथ लगाने पर गरमी महसूस की जा सकती है। दिल की गति बढ़ जाती है और मरीज बेहोश भी हो जाता है। यही खून के थक्के अगर छाती में जम जाएं, तो मौत का कारण बन सकते हैं।