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सरकार के गले की हड्डी बनी 25 लाख टन अरहर

मुंबई
तुअर यानी अरहर की पैदावार कम हो तो फजीहत, और ज्यादा हो जाए तो भी फजीहत। यह दाल अब फडणवीस सरकार के गले की हड्डी बन गई है। इस फजीहत से छुटकारा पाने के लिए राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री गिरीष बापट व सहकारिता व विपणन मंत्री सुभाष देशमुख की एक समिति बनाई गई है, जो यह तय कि किसानों से खरीदी गई 25 लाख टन अरहर का क्या करें?

गौरतलब है कि 2015 में अचानक ही देश में अरहर के दाल की भारी कमी हो गई। प्रति किलो 50 से 60 रुपये में बिकने वाली दाल महाराष्ट्र में 250 रुपये तक पहुंच गई। फडणवीस सरकार के पसीने छूट गए थे। सरकार ने आनन-फानन में व्यापारियों से महंगी दाल खरीदी और लोगों को को 100 रुपये प्रति किलो मुहैया कराया। उसी वक्त देश में दाल की पैदावार बढ़ाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक ने खूब हाथ-पैर मारे। किसानों को प्रोत्साहित किया। हुआ यह कि किसानों ने जमकर अरहर उगाई। मौसम ने भी साथ दिया, जिससे पैदावार सरकार की उम्मीद से भी ज्यादा हुई। मगर अब अरहर की अत्यधिक पैदावार की वजह से इसकी कीमत औंधे मुंह गिर पड़ी। किसानों से अरहर खरीदना अब सरकार की मजबूरी बन गई।

फडणवीस सरकार ने बेमन से किसानों से अरहर खरीदना शुरू किया। आज सरकारी गोदामों में 25 लाख 25 हजार क्विंटल अरहर पड़ा है। गोदाम भरे पड़े है। इसे गोदामों से हटाना जरूरी है, वर्ना किसानों से खरीदे गए दूसरे अनाज कहा रखे जाएंगे? यों अरहर की फसल तो इस साल भी अच्छी हुई और इसे भी सरकार को खरीदना पड़ेगा। सरकार ने अरहर का स्टॉक कम करने के लिए राशन की दुकानों से इसे 55 रुपये प्रति किलो बेचने की कोशिश की, लेकिन उसे आम जनता से अधिक प्रतिसाद नहीं मिला। खाद्य व आपूर्ति विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सरकारी राशन की दुकानों के साथ-साथ मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स सहित अन्य निजी दुकानों पर नहीं बेंचेंगे, तो गोदाम खाली नहीं होंगे।

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