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टोल नाकों पर भी हो एयरपोर्ट्स जैसा लुकआउट अलर्ट

मुंबई : 11 साल पहले जब गुजरात में बम धमाके हुए थे, तो उन धमाकों में इस्तेमाल की गई गाड़ियां नवी मुंबई से चुराई गई थीं। उस दौर में मुंबई, नवी मुंबई या आसपास के जिलों में सीसीटीवी बहुत कम हुआ करते थे। अब देश की आर्थिक राजधानी लगभग पूरी तरह से सीसीटीवी से कवर है। यदि कुछ इलाके कैमरों से दूर हैं, तो साल 2019 में 5000 नए कैमरों के साथ उन्हें भी सीसीटीवी के दायरे में लाया जा रहा है। मुंबई पुलिस में काफी अधिकारियों का कहना है कि यदि राज्य सरकार को गाड़ी चोरी से जुड़े अपराध को रोकना है, तो उसे मुंबई से जुड़े सभी टोल नाकों में उसी तरह का लुक आउट नोटिस सिस्टम लाना पड़ेगा, जैसा सिस्टम एयरपोर्ट्स पर है।

अभी जब किसी आरोपी की पुलिस को तलाश रहती है और उसके नाम, फोटो और पासपोर्ट नंबर की डिटेल मिल जाती है, तो पुलिस सभी एयरपोर्ट्स पर पूरी जानकारी भेज देती है। जैसे ही आरोपी एयरपोर्ट पहुंचता है, कंप्यूटर में उसके नाम से जुड़ा बीप… बीप बजने लगता है। आरोपी वहां ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। एक अधिकारी के अनुसार, मुंबई में कोई भी गाड़ी टोल नाके तक पहुंचने से पहले तमाम ट्रैफिक सिग्नल से होकर गुजरती है। पिछले दो साल में हर ट्रैफिक सिग्नल पर इतने कैमरे लगाए गए हैं कि यदि किसी ने भी ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन किया, तो उसकी गाड़ी का नंबर कैमरे में कैद हो जाता है। उसके मोबाइल पर ई-चालान का अलर्ट आता है और उसे ऑन लाइन इसे भरना ही पड़ता है।

एक अन्य अधिकारी का कहना है कि जब डांस बार फिर से शुरू करने की बात हुई थी, तो पुलिस ने डांस बार मालिकों के सामने एक जरूरी शर्त यह रखी थी कि उनके डांस बारों के सभी सीसीटीवी कैमरों का एक्सेस सीधे मुंबई पुलिस कंट्रोल रूम में होगा, जिसका डांस बार मालिकों ने विरोध किया था। यदि डांस बारों के कैमरों का एक्सेस कंट्रोल रूम में संभव है, तो गाड़ी चोरी के नंबरों का अलर्ट भी कंट्रोल रूम के साथ- साथ सभी टोल नाकों पर संभव है। बस, सरकार को इसके लिए पहल करनी पड़ेगी। वैसे कई अपराधी चोरी के बाद गाड़ी का नंबर बदल देते हैं और उसके बाद टोल नाकों से गुजरते हैं। पर क्राइम ब्रांच से जुड़े एक अधिकारी का मत है कि कोई भी अपराधी जिस जगह से गाड़ी उठाता है, उस जगह पर वह नंबर नहीं बदलता है। वह कुछ मीटर तो गाड़ी भगाकर ले ही जाता है। उसी वक्त किसी पहले किसी ट्रैफिक सिग्नल पर उस गाड़ी का नंबर कैमरे में आएगा ही। यदि आगे कोई तुक्के में बनाया नंबर गाड़ी में लगाया जाएगा, तो अगले कैमरे में कैद होते ही उसी वक्त पुलिस को पता चल जाएगा कि यह नंबर किसी के भी नाम रजिस्टर्ड नहीं र्है। उस स्थिति में भी यदि टोल नाकों को तत्काल अलर्ट कर दिया जाए, तो चोरी की गाड़ियों को वहीं ट्रेस किया जा सकता है।

कंट्रोल रूम भेजा जाता है चोरी की गाड़ी का नंबर

इसी तरह जब किसी की गाड़ी चोरी होती है, तो उसे ट्रेस करने की भी एक प्रक्रिया है। गाड़ी चोरी होने के बाद जब कोई पुलिस स्टेशन जाकर एफआईआर दर्ज कराता है, तो चोरी हुई गाड़ी का नंबर फौरन कंट्रोल रूम को भेज दिया जाता है। जैसे ही कंट्रोल रूम के सिस्टम में यह नंबर फीड किया जाता है, सिस्टम में बीप… बीप की आवाज आती है। सिस्टम में सामने आ जाता है कि यह गाड़ी किस-किस ट्रैफिक सिग्नल से होकर गुजरी। चूंकि चोरी की गाड़ियां अमूमन दूसरे राज्यों में ही भेजी जाती हैं और किसी न किसी एंट्री पॉइंट टोल नाका से ही गुजर कर जाती हैं, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम के सिस्टम से इतना तो पता चल जाता है कि यह गाड़ी किस टोल नाका वाले रूट से गुजरी होगी। इस अधिकारी का कहना है कि जिस तरह चोरी की गाड़ी का नंबर कंट्रोल रूम के सिस्टम में बीप… बीप करके बजता है, उसी वक्त उस गाड़ी का नंबर सभी टोल नाका के सिस्टम में भी बीप… बीप होना चाहिए। उसके बाद जैसे ही ड्राइवर टोल नाके पर बैठे कर्मचारी को टोल की रकम दे, उसका नंबर टोल नाके के कंप्यूटर पर फिर से बीप… बीप होने लगे। फौरन उस गाड़ी को वहां रोक दिया जाए और पुलिस को उसकी सूचना दी जाए। बेहतर है कि हर टोल नाके पर इसके लिए दो-दो पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगा दी जाए। मुंबई से बाहर जाने वाले कुल पांच टोल नाके मुलुंड (दो जगह), दहिसर, एरोली और वाशी में हैं।

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