मुंबई, मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र आवास और विकास प्राधिकरण (म्हाडा) से पूछा है कि उसकी परियोजनाओं से प्रभावित लोगों के लिए उसने क्या किया है। अदालत ने निर्देश दिया है कि म्हाडा ने मुंबई में अपने जिन 1384 फ्लैटों की बिक्री के लिए विज्ञापन दिया है, उसके विरोध में जो याचिका दायर हुई है, उस पर अपना हलफनामा दायर करे। न्यायाधीश नरेश पाटील और न्यायाधीश एन.एम जामदार ऐक्टिविस्ट कमलाकर शिनॉय द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई कर रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि इन फ्लैटों की बिक्री गैर कानूनी है, क्योंकि ये फ्लैट राज्य सरकार के विकास नियंत्रण कानून (डीसीआर) में आ रहे हैं। कोर्ट ने म्हाडा से यह भी पूछा है कि उसने उन लोगों के लिए क्या किया है जो म्हाडा की अनेक परियोजनाओं के कारण मुंबई में प्रभावित हुए हैं। ऐसे अनेक परिवारों के पुनर्वसन के लिए क्या किया है। ऐसे अनेक परिवार हैं, जो सरकार की अनेक योजनाओं के कारण आज उजड़ गए हैं। याचिका में कहा गया है कि इन फ्लैटों की बिक्री और आबंटन उन्हीं लोगों को किए जाने चाहिए, जो सरकार की अनेक विकास और पुनर्विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित या प्रभावित हुए हैं। याचिका के अनुसार, 5 नवंबर, 2018 को म्हाडा ने जो विज्ञापन जारी किया था, उसमें लॉटरी द्वारा 1384 फ्लैटों की बिक्री के लिए आवेदन मांगे गए थे। याचिका कहती है कि इनमें से अधिकांश फ्लैट वे हैं, जो प्राइवेट बिल्डरों ने सैस इमारतों के पुनर्विकास के बदले प्राप्त अधिकारों के तहत सरेंडर किए हैं।
डीसीआर के नियम 33(7) के तहत यह अनिवार्य है कि डिवेलपर अपने सरप्लस एरिया में से कुछ फ्लैट सरकार को सरेंडर कर दें। इसके बदले में उन्हें एफएसआई आदि पाने जैसे लाभ दिए जाते हैं। ऐसे डिवेलपर अधिकांश रूप से शहर की पुरानी इमारतों का पुनर्विकास करते हैं।
याचिका कहती है कि इन फ्लैटों को व्यापारिक फायदे के लिए नहीं बेचा जा सकता। म्हाडा को इन फ्लैटों को उन लोगों के लिए आरक्षित करना चाहिए, जो सरकार या म्हाडा की रिपेयर, री-डिवलपमेंट और नई विकास परियोजनाओं से प्रभावित हुए हैं। हालांकि म्हाडा ने इन आरोपों को निराधार बताया है और कहा है कि ये फ्लैट नियम 33(7) के तहत आते हैं।