रिजवाना दिन में एक मां की तरह घर में रहती हैं और रात में ओला कैब की ड्राइवर बन जाती हैं। रिजवाना ने बताया कि वह लखनऊ + में पली बढ़ी हैं। उनकी शादी जोगेश्वरी के एक व्यापारी से हुई जिसके बाद वह मुंबई आ गईं।
आज माहौल बदला है। महिलाएं, खासकर रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाएं भी आज संकीर्ण मानसिकता वाले समाज से निकलकर जिंदगी को नए आयाम दे रही हैं। यहां मुंबई में ये महिलाएं आज रात की जिंदगी का हिस्सा बन रही हैं। सुरक्षा को लेकर भी ये महिलाएं सतर्क हैं और उनका कहना है कि अब उन्हें इतना डर नहीं लगता।
रिजवाना की एक 7 साल की बेटी है। रिजवाना का दावा है कि वह पिछले आठ महीनों से रात में कैब + चला रही हैं। कभी-कभी उन्हें कुछ उपद्रवियों का सामना भी करना पड़ता है। हालांकि जब वह असहज महसूस करती हैं तो बुकिंग कैंसल भी कर देती हैं। रिजवाना ने बताया कि पहले वह एक ब्यूटिशियन थीं। अब उनके लिए यह प्रफेशन ज्यादा फायदे का नहीं रहा। ऐसे में वह कैब से महीने में 30,000 से 40,000 रुपये काम लेती हैं। उनके पति और परिवार बहुत सपॉर्टिव है और वे यह समझते हैं कि उनके घर के खर्चों के लिए उनका यह काम करना जरूरी है। जोगेश्वरी की रहने वाली मेहजबीन (42) भी नाइट शिफ्ट + करती हैं और कहीं भी आने जाने में उन्हें कोई घबराहट नहीं होती। उनके पति मार्केटिंग की जॉब में हैं और वह 6 साल से गाड़ी चला रही हैं। मेहजबीन ने बताया कि घर के सारे काम खत्म करने के बाद उनके काम की शुरुआत रात में 8 बजे होती है। वह सुबह तक गाड़ी चलाती हैं।
ओला और उबर ने पहले उन्हें सेवा देने से मना कर दिया था लेकिन बाद में ट्रेंड देखकर वे राजी हो गए। ओला के प्रवक्ता ने बताया कि महिला भागीदारों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। अब यह भागीदारी लगभग 40 फीसदी हो गई है। यह भागीदारी सिर्फ मेट्रो में नहीं बल्कि अन्य शहरों में भी है। उनके साथ सिर्फ कैब ही नहीं बल्कि ऑटो और बाइक चलाने वाली महिलाएं भी जुड़ी हैं।
पश्चिमी बस्ती में रहने वाली 25 साल की विद्या शेलके इनके साथ काम करना उपलब्धि मानती हैं। विद्या ने बताया कि वह पति और दो बच्चों के साथ रहती हैं। पिछले 6 महीने से कैब चला रही हैं। वह सिर्फ तब ही बुकिंग लेती हैं जब वह उसे मैनेज कर सकें। वहीं 23 साल की प्रजाक्ता सलुंखे इस काम को आर्थिक स्वतंत्रता + का रास्ता मानती हैं। वह कहती हैं कि बिना किसी आर्थिक सहायता और पूंजी के कोई काम शुरू करना बहुत कठिन होता है। यह काम ऐसे लोगों के लिए एक वरदान साबित हुआ है।