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लखनऊ: मदरसे में बंधक 51 लड़कियां छुड़ाई गईं, संचालक गिरफ्तार

लखनऊ
यूपी की राजधानी लखनऊ के सआदतगंज इलाके के खदीजतुल कुबरा लिलबनात मदरसे से पुलिस और प्रशासन की टीम ने छापा मारकर शुक्रवार रात 51 छात्राओं को मुक्त करवाया। पीड़ित छात्राओं ने संचालक-प्रबंधक यासीनगंज निवासी कारी तैय्यब जिया पर यौन शोषण और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया है।पुलिस ने तैय्यब पर मारपीट, धमकी देने, जालसाजी देने के अलावा पॉस्को ऐक्ट और 7 सीएलए ऐक्ट में केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया है। बयान दर्ज करने के बाद छात्राओं को राजकीय बाल गृह (बालिका) भेज दिया गया है। सआदतगंज के यासीनगंज में कैम्पबेल रोड पर मदरसा खदीजतुल कुबरा लिलबनात है। एडीएम पश्चिमी संतोष कुमार वैश्य ने बताया कि मदरसे में 125 छात्राएं पढ़ती हैं, लेकिन मौजूदा समय में 51 छात्राएं ही कागज पर संदेश लिखकर फेंका
मदरसे के संस्थापक इंदिरानगर निवासी सैयद मोहम्मद जिलानी अशरफ ने बताया कि छात्राओं ने कागज के टुकड़े पर अपनी व्यथा लिखी और उसे मदरसे की छत से फेंका। कागज पाकर मोहल्ले वालों ने अशरफ को मामले की जानकारी दी।

कागज में छात्राओं ने लिखा था कि तैय्यब जिया व उसके चार साथी उनका यौन शोषण करते थे। विरोध करने पर उन्हें असलहे दिखाकर जान से मारने की धमकी देते थे। इस पर मोहम्मद जिलानी सआदतगंज कोतवाली पहुंचे और अर्जी दी, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद वह सीओ बाजारखाला के पास पहुंचे।

सीओ के निर्देश पर सआदतगंज पुलिस हरकत में आई और मुकदमा दर्ज किया। मामले की जानकारी एसएसपी दीपक कुमार व डीएम कौशलराज शर्मा को हुई तो पुलिस व प्रशासन की टीम ने महिला पुलिसकर्मियों के साथ मदरसे में छापा मारकर बंधक बनाई गईं 51 छात्राओं को मुक्त करवाया।

जिलानी के आरोप सही होने का दावा
एसीएम, एडीएम, महिला एसआई और चाइल्ड वेलफेयर कमिटी की सदस्यों ने छात्राओं के बयान दर्ज किए तो जिलानी के आरोप सही पाए गए। एडीएम ने भी इसकी पुष्टि की। सभी छात्राओं को मोतीनगर स्थित राजकीय बाल गृह (बालिका) भेज दिया गया है।

पुलिस ने सार्वजनिक किए पीड़िताओं के नाम
पुलिस ने आरोपित संचालक के खिलाफ कार्रवाई तो की, लेकिन पीड़ित छात्राओं का वह पत्र भी सार्वजनिक कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी व्यथा लिखी थी। पत्र में मदरसे की कई छात्राओं के नाम और उनकी कक्षा का ब्योरा है।

यही नहीं, एसएसपी के पीआरओ ने वह पत्र मीडिया को भी सौंप दिया, जिसमें पीड़िताओं के नाम लिखे हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि यौन शोषण के मामलों में किसी भी पीड़िता की पहचान सार्वजनिक न की जाए। पुलिस की इस कार्यशैली पर छात्राओं के परिवारीजनों में काफी आक्रोश है।

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