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इराक में जिंदा बचे हरजीत मसीह अपनी कहानी पर कायम, सरकार पर दागे सवाल

अमृतसर
इराक के मोसुल में अगवा किए गए 40 भारतीयों में जिंदा बचे 27 साल के हरजीत मसीह अपने बयान पर कायम हैं। बता दें कि संसद में 39 भारतीयों के आईएस के हाथों मारे जाने की पुष्टि करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हरजीत की कहानी को गलत बताया था। मसीह को इस बात की नाराजगी है कि सरकार ने उनकी भारतीयों को अगवा करने और मारे जाने की बात पर क्यों नहीं यकीन किया। आईएस के चंगुल से बचकर निकले हरजीत का कहना है कि उन्होंने 11 जून 2014 को ही सरकार को भारतीयों के अगवा करने और मारे जाने की बात बताई थी। मसीह का दावा है कि आईएस + के चंगुल से बचकर निकलने वालों में वह अकेले शख्स हैं और उनके सामने ही 39 और मजदूरों की हत्या कर दी गई थी। मसीह बांग्लादेश के उन 51 और भारत के 40 नागरिकों में से एक हैं, जिन्हें इराक के मोसुल शहर में आतंकी संगठन आईएस ने अगवा कर लिया था। आतंकियों ने बांग्लादेशियों और भारतीयों को 2 अलग ग्रुप में बांट दिया और बांग्लादेशियों को जाने की अनुमति दे दी। ये सभी मजदूर थे और मोसुल की एक टैक्सटाइल फैक्ट्री में काम करते थे मसीह ने सरकार पर आरोप लगाया कि उसे पूछताछ के लिए हिरासत में रखा गया और 39 अन्य परिवारों को झूठे आश्वासन दिए, जबकि उसने उनकी मौत की खबर सरकार को दे दी थी। मसीह का कहना है, ‘मैंने सरकार को 39 लोगों के मारे जाने की बात बताई थी, इसके बाद भी मुझ पर विश्वास नहीं किया गया। सरकार ने मारे गए 39 परिवार के लोगों को झूठी उम्मीद दी। मसीह इस वक्त गुरदासपुर के बाजार में बतौर मजदूर काम कर रहे हैं। मसीह का कहना है, ‘मुझे 6 महीने तक जेल में रखा गया जबकि मैंने सरकार को सच बताया था, लेकिन केंद्र सरकार ने मुझ पर भरोसा नहीं किया। इराक से बचकर आने के बाद से मैं सच बोल रहा हूं, लेकिन किसी ने मुझ पर यकीन नहीं किया। 6 महीने मैं जेल में रहा, इसकी भरपाई कौन करेगा?’ मसीह के परिवार ने उसे इराक भेजने के लिए 1.5 लाख रुपए उधार लिया था। इराक में वह एक कंपनी में पाइप फिटर का काम करते थे।

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