नई दिल्ली, जिस प्लास्टिक को वैज्ञानिकों ने मानव जाति की सुविधा के लिए ईजाद किया था, वह भस्मासुर बनकर समूचे पर्यावरण के विनाश का कारण बनती जा रही है। इसकी सबसे बड़ी खूबी ही दुनिया के लिए सबसे खतरनाक बात बन गई है, और वह है नष्ट न होना। इसके चलते हमारी धरती से लेकर समुद्र तक हर तरफ प्लास्टिक ही प्लास्टिक है। पीने के पानी में हम प्लास्टिक पी रहे हैं, नमक में प्लास्टिक खा रहे हैं। सालाना लाख से अधिक जलीय जीव प्लास्टिक प्रदूषण से मर रहे हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण थाईलैंड में देखने को मिला है, जहां दो दिन पहले ही एक व्हेल मछली 80 से अधिक प्लास्टिक बैग निगलने के कारण मर गई। दुनिया की यह दुर्गति हमारी अपनी वजह से हुई है। हम विकल्पों की तरफ देखना ही नहीं चाहते। यही वजह है इस वर्ष पर्यावरण दिवस (5 जून) की थीम प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने पर आधारित है। इस वर्ष इसका वैश्विक आयोजन भारत में हो रहा है।जिस रूप में आज हम पॉलिथीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसकी खोज 27 मार्च, 1933 को अनजाने में हुई थी। दो ब्रिटिश वैज्ञानिकों एरिक फॉसेट और रेजिनाल्ड गिब्सन इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज में इथाईलीन पर प्रयोग कर रहे थे, जब इथाईलीन में ऑक्जीजन के अणु मिल जाने से रातोंरात पॉलिथीन बन गया। दो वर्ष बाद उन्होंने पॉलिथीन बनाने के तरीके का ईजाद किया। तब ये दोनों वैज्ञानिक भी नहीं जानते होंगे कि जिस प्लास्टिक को उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए बनाया वह एक दिन पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगा।अमेरिका में सालाना औसत व्यक्ति 109 किग्रा प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है। इसके मुकाबले भारत में एक औसत भारतीय सालाना 11 किग्रा प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है। मैन्युफैक्र्चंरग के क्षेत्र में प्लास्टिक की जरूरत को देखते हुए भारतीय प्लास्टिक उद्योग 2022 तक प्रति व्यक्ति प्लास्टिक उपयोग को दोगुना करने के प्रयास में है।सिर्फ एक कानून
फिलहाल देश में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर लगाम कसने के लिए सिर्फ एक कानून है कि कोई उत्पादक या दुकानदार 50 माइक्रान से कम मोटी प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं कर सकता है। यह कानून अन्य सभी प्रकार के प्लास्टिक बैग पर लागू नहीं होता इसलिए प्लास्टिक का उपयोग कम नहीं होता।
अमृत को बना रहा जहरीला
अगर पानी अमृत है तो इस अमृत को भी प्लास्टिक जहरीला बना रहा है। जिस बोतलबंद पानी को हम मिनरल वाटर समझकर गटागट पी जाते हैं, दरअसल उसमें भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण होने की बात सामने आ चुकी है। फ्रेडोनिया स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के वैज्ञानिकों ने हाल में एक शोध किया। नौ देशों में 19 स्थानों की 259 बोतलों पर हुए अध्ययन में पता चला कि प्रति लीटर पानी में औसतन 325 प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए। किसी-किसी बोतल में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों की सांद्रता दस हजार तक भी दिखी। 259 में से केवल 17 बोतलें प्लास्टिक मुक्त मिली। इसी संस्था ने इससे पहले के अध्ययन में बताया था कि दुनिया के कई देशों में घरों में आपूर्ति किए जाने वाले पानी में प्लास्टिक की मात्रा काफी ज्यादा है। अपनी तरह का यह सबसे बड़ा अध्ययन पत्रकारिता संगठन ओर्ब मीडिया के सौजन्य से किया गया।
कहां कहां मिले
बोतलबंद पानी में ज्यादातर जो प्लास्टिक का प्रकार मिला है, उसे पॉलीप्रोपायलिन कहते हैं। इसी प्लास्टिक के इस्तेमाल से पानी के बोतलों का ढक्कन तैयार किया जाता है। अध्ययन में भारत सहित अमेरिका, चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, मेक्सिको, लेबनान, केन्या और थाईलैंड के बोतलबंद पानी को शामिल किया गया।
वजह
दरअसल सदियों तक सड़ने न वाला प्लास्टिक धरती की कोख में मौजूद पानी यानी भूजल को प्रदूषित कर रहा है। प्लास्टिक के बहुत सूक्ष्म टुकड़े भूजल में मिलकर उसे दूषित कर रहे हैं। मिनरल वाटर के नाम से बोलतबंद पानी बेचने वाली कंपनियां इसी भूजल का इस्तेमाल करती है, लेकिन उनकी प्रोसेसिंग में यह प्लास्टिक के सूक्ष्म कण खत्म नहीं हो पाते।
रोकथाम के कायदे-कानून फ्रांस
इस देश ने 2016 में प्लास्टिक पर बैन लगाने का कानून पारित किया। इसके तहत प्लास्टिक की प्लेटें, कप और सभी तरह के बर्तनों को 2020 तक पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। फ्रांस पहला देश है जिसने प्लास्टिक से बने रोजमर्रा की जरूरत के सभी उत्पादों को पूरी तरह बैन किया है। इसके तहत प्लास्टिक उत्पादों के विकल्प के तौर पर जैविक पदार्थों से बने उत्पादों को इस्तेमाल किया जाएगा।
रवांडा : अन्य विकासशील देशों की तरह यहां भी प्लास्टिक की थैलियों ने जल निकासी के रास्ते अवरुद्ध कर दिए थे जिससे यहां के इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचने लगा था। इस विकट स्थिति से निपटने के लिए यहां की सरकार ने देश से प्राकृतिक रूप से सड़नशील न होने वाले सभी उत्पादों को बैन कर दिया। यह अफ्रीकी देश 2008 से प्लास्टिक मुक्त है।
स्वीडन : यहां प्लास्टिक बैन नहीं किया गया है बल्कि प्लास्टिक को अधिक से अधिक रिसाइकिल किया जाता है। यहां हर तरह के कचरे को रिसाइकिल करके बिजली बनाई जाती है। इसके लिए यह पड़ोसी देशों से कचरा खरीदता है।
आयरलैंड : इस देश ने 2002 में प्लास्टिक बैग टैक्स लागू किया जिसके तहत लोगों को प्लास्टिक बैग इस्तेमाल करने पर भारी भरकम टैक्स चुकाना पड़ता था। इस कानून के लागू होने के कुछ दिन बाद प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल में 94 फीसद कमी आ गई।
रंग ला रही कोशिश
ऐसा नहीं है कि इस प्लास्टिक के बढ़ते दखल के बीच सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। कई देशों में अलगअलग तरीकों से इस दैत्य को हराने की जंग जारी है।
समुद्र साफ करने की पहल
प्लास्टिक कचरा उत्पादन की स्थिति यही रही तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक नजर आएगा। इससे बचने के लिए नीदरलैंड ने समुद्र साफ करने की पहल कर दी है। उसने अपने समुद्री तट पर दुनिया का पहला रबर का बड़ा अवरोधक इसी सप्ताह लगाया है। यह समुद्री कचरे को एकत्र करेगा। परीक्षण कामयाब रहा तो 2020 तक प्रशांत महासागर में सौ किमी लंबा अवरोधक लगाया जाएगा। ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच नामक इस जगह पर समुद्री कचरा अधिक है। इससे प्रशांत महासागर का 42 फीसद कचरा अगले दस साल में छान लिया जाएगा।
यह सात करोड़ किग्रा के बराबर होगा। प्लास्टिक चट करने वाला एंजाइम ब्रिटेन और अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक ऐसा एंजाइम विकसित किया है जो प्लास्टिक को गला कर खत्म कर सकता है। इसका नाम पीईटी-ऐज है। वैज्ञानिकों ने इस एंजाइम का परीक्षण प्लास्टिक बोतलों पर किया, जिसके नतीजे सकारात्मक रहे। उम्मीद है कि इसके जरिए प्लास्टिक को बड़े पैमाने पर रिसाइकिल किया जा सकेगा, जिससे पर्यावरण में मौजूद प्लास्टिक का कचरा कम हो सकेगा।
करें विकल्पों का प्रयोग
प्लास्टिक के उत्पाद सस्ते और सुलभ होते हैं। उनकी इसी मौजूदगी ने पर्यावरण को क्षति पहुंचाई है। प्लास्टिक पर हमारी बढ़ती निर्भरता के चलते हम सदियों से इस्तेमाल होते आ रहे विकल्पों को भूल गए हैं।
प्राकृतिक पॉलीमर : सिंथेटिक या कृत्रिम पॉलीमर की तुलना में प्राकृतिक पॉलीमर पेड़-पौधों व जीवों से मिलता है। यह बहुत आसानी से नष्ट हो जाता है और पर्यावरण के लिए बिल्कुल हानिकारक नहीं होता। कपास और रेशम इसका उदाहरण हैं।
स्टार्च : कई भोजन पदार्थों में पाया जाने वाले स्टार्च की आसान उपलब्धता के चलते यह आसानी से प्लास्टिक का विकल्प बन सकता है। वैज्ञानिकों ने
इस दिशा में शोध शुरू कर दिए हैं। स्टार्च आधारित उत्पाद बनाने में एक बड़ी समस्या यह है कि इससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा आ सकता है।
दोबारा इस्तेमाल में आने वाले उत्पाद : कुछ वर्षों पहले तक मिट्टी, धातु, कांच के बने बर्तन ही इस्तेमाल होते थे। इन्हें कई बार इस्तेमाल कर सकते थे। धीरे-धीरे सस्ते प्लास्टिक उत्पादों ने इनकी जगह ले ली। अनुमान है कि लोग प्रति मिनट दस लाख प्लास्टिक बोतलें इस्तेमाल करते हैं। अगर फिर से उन्हीं पदार्थों की तरफ मुड़ा जाए तो प्लास्टिक उत्पादन पर लगाम लगाई जा सकती है।
प्लास्टिक का पुनर्चक्रीकरण : अधिकतर प्लास्टिक उत्पाद सिर्फ एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिए जाते हैं। ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल बंद करना होगा। ऐसे उत्पादों को चुनना होगा जो ज्यादा समय तक इस्तेमाल किए जा सकें और उनका जीवनकाल पूरा होने के बाद उन्हें रिसाइकिल करके किसी दूसरे काम में लाया जा सके।