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चैरिटी के नाम पर दी जाने वाली सुविधाओं का देना होगा ब्योरा

मुंबई: महज ‘चैरिटेबल’ शब्द लिखकर प्रॉपर्टी टैक्स में राहत पाने वाले स्कूलों पर लगाम कसने की तैयारी बीएमसी ने कर ली है। इसके तहत, अब प्रॉपर्टी टैक्स में छूट पाने वाले स्कूलों-कॉलेजों को चैरिटी के नाम पर किए जाने वाले कार्यों का लेखा-जोखा देना होगा।
बीएमसी से मिली जानकारी के अनुसार, ब्योरा न देने वाली संस्थाओं को टैक्स में राहत देने से रोकने के लिए बीएमसी संबंधित नीति में बदलाव कर रही है। बता दें कि अब तक इसके लिए संस्थाओं की तरफ से चैरिटी कमिशन ऑफिस से मिले चैरिटेबल स्कूल का केवल प्रमाण-पत्र लगाया जा रहा था।
जानकारी के अनुसार, कई निजी शैक्षणिक संस्थान ‘चैरिटेबल’ शब्द का सहारा लेकर प्रॉपर्टी टैक्स में राहत ले रहे हैं। हालांकि इसके नाम पर वे बच्चों को कितनी सुविधाएं देते हैं, इस पर संशय के बादल हमेशा रहते हैं। ऐसे में चैरिटेबल शब्द का इस्तेमाल कर टैक्स में राहत पाने वालों को नई नीति के अनुसार काम करना होगा। अब उन्हें बच्चों को दी जाने वाली सुविधाओं का संपूर्ण विवरण प्रशासन को देना होगा। ऐसा न करने वाले चैरिटेबल शैक्षणिक संस्थानों को प्रॉपर्टी टैक्स के नाम पर मिलने वाली राहत से वंचित कर दिया जाएगा।
बीएमसी के अडिशनल म्युनिसिपल कमिश्नर संजय मुखर्जी ने कहा कि नई नीति टैक्स में राहत पाने की प्रक्रिया को बेहद स्पष्ट और पारदर्शी बनाती है। पहले की नीति उतनी साफ नहीं थी। बीएमसी से जुड़े एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि असेसमेंट और कलेक्शन विभाग ने पिछले साल जनवरी में एक सर्कुलर जारी कर सभी चैरिटेबल शैक्षणिक संस्थानों से जरूरतमंद स्टूडेंट को दी जाने वाली सुविधाओं की जानकारी मांगी थी। लेकिन, 80 प्रतिशत स्कूलों ने जानकारी नहीं दी थी। टैक्स में राहत पाने के लिए स्कूलों को जरूरतमंद विद्यार्थियों को कई तरह की सुविधाएं देनी होती हैं। इनमें कम पैसे में स्कूली ड्रेस, विशेष क्लास, प्रवेश में राहत जैसी कई तरह की सुविधाएं शामिल हैं। इन सब में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को प्रवेश देना सबसे अहम है। चैरिटेबल स्कूलों या कॉलेज की कुल सीटों का 10 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे, जबकि 10 प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए होता है। नई पॉलिसी के अनुसार, जब तक स्कूलों की तरफ से मापदंडों का लेखा-जोखा प्रशासन को नहीं दिया जाता, उन्हें टैक्स में राहत से दूर रखा जाएगा।
अभी तक प्रॉपर्टी टैक्स में छूट को लेकर स्पष्ट मापदंड नहीं थे, अब प्रक्रिया पारदर्शी करने की कोशिश है। इससे सही संस्थानों को लाभ मिल सकेगा।

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