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एटीएस की काउंसिलिंग और रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम की बदौलत हुआ मुख्य धारा में शामिल

मुंबई : महाराष्ट्र के बीड़ जिले में मोबाइल फोन रिपेयर की दुकान चला रहे जमील अंसारी (बदला हुआ नाम) को देखकर कोई भी यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि महज दो साल पहले वह हजारों किलोमीटर दूर इराक जाकर खूंखार आतंकवादी संगठन आईएस में शामिल होने वाला था। भला हो महाराष्ट्र आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) का, जिसने अंसारी का मन बदला और उसे रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल किया। एटीएस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार जमील इराक और सीरिया के आईएस की ऑनलाइन भर्ती के चंगुल में फंस गया था, जिसने उसे लगभग कट्टरपंथी बना दिया था।

उस अधिकारी ने बताया कि जमील अकेला ऐसा व्यक्ति नहीं है। महाराष्ट्र में कई युवक खासतौर से पिछड़े क्षेत्र के युवक आईएस के जाल में फंस चुके थे, लेकिन अब वे रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम की मदद से सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। ३५ साल के स्नातक अंसारी की २०१६ में सेल्समैन की नौकरी चली गई थी और बेरोजगारी के उस दौर में वह काफी समय ऑनलाइन बिताने लग गया था। उसी समय वह आईएस के कुछ लोगों के संपर्क में आया और जल्द ही कट्टरपंथी बन गया।

अधिकारी ने बताया, ‘जमील की ऑनलाइन गतिविधियां उसे जांच के दायरे में ले आईं।’ एटीएस के अधिकारियों ने पाया कि अंसारी आईएस के प्रोपेगैंडा में फंस गया है, जिसके बाद उसकी काउंसिलिंग की गई। अधिकारी ने बताया कि एटीएस धार्मिक नेताओं और मौलवियों की मदद से ऐसे लोगों को फिर से मुख्यधारा में लाने के लिए एक कार्यक्रम चलाती है, जिसमें उनकी काउंसिलिंग की जाती है। मराठावाड़ा में एटीएस ने पिछले दो साल में ऐसे ४०० लोगों की पहचान की, जिनके आईएस के प्रभाव में होने का संदेह था।

अधिकारी ने बताया कि जब किसी व्यक्ति को कट्टरपंथी बना दिया जाता है, तो फिर उसे आईईडी या अन्य हथियार बनाना सिखाया जाता है। कुछ को इराक में आईएस में शामिल होने के लिए भी उकसाया जाता है। गौरतलब है कि एटीएस ने पिछले महीने औरंगाबाद और ठाणे जिलों से रासायनिक हमले करने के आरोप में नौ लोगों को गिरफ्तार किया था। एटीएस प्रमुख अतुलचंद्रा कुलकर्णी ने बताया कि उन्हें महसूस हुआ कि मुस्लिम समुदाय के ऐसे लोगों के लिए मुख्य समस्या बेरोजगारी है जिससे वे ऑनलाइन कट्टर बन रहे हैं और आईएस के चंगुल में फंस रहे हैं।

कुलकर्णी ने कहा, ‘बड़ी चुनौती ऐसे लोगों का जीवन फिर से पटरी पर लाना होता है और हमने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों में इसका समाधान पाया।’ एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले साल इन संस्थानों में ऐसे २३९ लोगों को प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण दिए जाने के बाद तीस लोगों को अपना खुद का धंधा शुरू करने के लिए बैंक से कर्ज भी मिला है।

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