मुंबई : आगामी लोकसभा चुनावों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना से गठबंधन कर महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों का बंटवारा फाइनल कर लिया। दोनों पार्टियों ने 23 और 25 सीटें आपस में बांट ली हैं। इसके बाद बीजेपी के साथ महायुति में शामिल छोटी पार्टियों के नेता परेशान हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि ‘बड़ा भाई-छोटा भाई’ के बीच सीटों के बंटवारे के बाद उनके हाथ क्या आने वाला है। उन्हें डर है कि कहीं उन्हें दरकिनार न कर दिया जाए।
2014 में महायुति में शामिल मित्र दलों यानी छोटी पार्टियों को चार लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था, लेकिन इस बार तो एक सीट के भी लाले पड़े हैं। आरपीआई के नेता रामदास आठवले, राष्ट्रीय समाज पार्टी के नेता महादेव जानकर, रयत क्रांति संगठन के नेता सदाभाऊ खोत, शिवसंग्राम के नेता विनायक मेटे सब के सब बीजेपी के इस व्यवहार से बेचैन हैं। रामदास आठवले तो बुधवार को इस पर खुलेआम अपनी नाराजगी जता चुके हैं।
आरएसपी के नेता महादेव जानकर कभी सुप्रिया सुले के खिलाफ बारामती से कभी शरद पवार के खिलाफ सोलापुर के माढा से, कभी राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ने की बात बोल-बोल कर सीट पाने के लिए जोर लगा रहे हैं। पिछली बार बीजेपी ने उन्हें बारामती की सीट दी थी, लेकिन वह बुरी तरह हार गए थे। खोत के हाथ से निकली हाथकांगले सीट इसी तरह पिछली बार हाथकांगले की सीट बीजेपी ने स्वाभिमान शेतकरी संगठन के नेता राजू शेट्टी को दी थी। वह चुनाव जीत कर सांसद भी बन गए, लेकिन बाद में बीजेपी से अलग हो गए। उनके साथी सदाभाऊ खोत अब भी बीजेपी के साथ है। शेट्टी से अलग होकर उन्होंने अपनी पार्टी रयत क्रांति संगठन बना ली है। वह इस बार राजू शेट्टी से हाथकांगले सीट पर दो-दो हाथ करना चाहते हैं पर बीजेपी ने शिवसेना के साथ परस्पर सीटों का बंटवारा कर लिया है, इससे वह मायूस हैं।
रामदास आठवले दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा सीट से खुद लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में यह सीट शिवसेना के पास है। शिवसेना के राहुल शेवाले इस सीट से सांसद हैं। ऐसे में आठवले को मौका मिलना लगभग नामुमकिन है। अब आठवले बीजेपी को कोस रहे हैं।
बीजेपी के लिए परेशानी
लोकसभा चुनाव में छोटे दलों को अपने कोटे में समाहित करना बीजेपी की जिम्मेदारी है। शिवसेना इनमें से किसी के लिए अपनी सीट नहीं छोड़ने वाली है, क्योंकि 2014 में जब शिवसेना महायुति से अलग हुई थी, तब इन सभी ने बीजेपी के साथ बने रहने का फैसला लिया था। बीजेपी इनमें से किसको सीट देगी इस बारे में अब तक कुछ साफ नहीं है। हो सकता है एक-दो को बीजेपी के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ाया जाए, लेकिन बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने से इन नेताओं की अपनी पार्टी का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। अब बीजेपी के पास एक ही रास्ता है कि वह इन नेताओं को विधानसभा में ज्यादा सीटें देने का लालच देकर मना ले।