मुंबई : महानगर के आसपास तेजी से बढ़ रही आबादी आने वाले 30 सालों में यहां के लोगों के लिए परेशानी का सबक बन सकती है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण की वजह से भविष्य में मुंबई को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। आईआईटी बॉम्बे की रिसर्च के अनुसार शहर से सटे गांवों में तेजी से हो रहा निर्माण कार्य से प्राकृतिक संसाधनों पर अनुचित दबाव पड़ रहा है। रिसर्च के मुताबिक खेती की जमीन निजी पूंजीपतियों के हाथों में जाने की वजह से किसानों को मजबूरन ईट-भट्टों में काम करना पड़ रहा है। आईआईटी बॉम्बे के प्रफेसर टी.आई.एल्डो ने कहा कि बिना किसी योजना के शहर के करीब हो रहा विकास कार्य भविष्य के लिए परेशानी खड़ा कर सकता है। पानी के सूखते स्रोत की वजह से आगामी 25 से 30 सालों में मुंबई को पानी की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
रिसर्च के अनुसार वर्ष 2001 में गांवों की 20 प्रतिशत आबादी की मुख्य आजीविका कृषि थी। जो अब घटकर 6 प्रतिशत तक रह गई है। खेती में घटती आमदनी की वजह से खेतों में काम करने वाले किसान अब ईंट-भट्टा और नदी से रेत निकालने का काम कर रहे है। गांवों में पूंजीपतियों के आने की वजह से खेत खलियान होटल व फॉर्म हाउस में बदल गए हैं। प्रफेसर एल्डो के अनुसार ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से ईंट-भट्टों चलाए जा रहे है। ईंट बनाने की प्रक्रिया से पर्यावरण प्रदूषित हो रही है। आईआईटी बॉम्बे ने मुंबई के करीब चार गावों में इस रिसर्च को अंजाम दिया है, जिसमें चौका देने वाले कई तथ्य सामने आए हैं।
औसत से तीन गुणा अधिक वर्षा होने के बावजूद इन गांवों को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। लगातार सूखते जल स्रोत की वजह से गांवों में बांध और अन्य तरीकों से पानी भेजा जा रहा है। होटल, रिसॉर्ट्स में खोदे गए निजी बोरवेल की वजह से भूजल स्तर में भी भारी कमी आई है। प्रफेसर एल्डो ने कहा कि भविष्य में आने वाली समस्या को रोकने के लिए सरकार को ग्रामीण इलाकों में नियोजित तरीके से विकास को अनुमति देनी चाहिए।
प्रफेसर एल्डो ने कहा, ‘कंक्रीटीकरण से पानी के स्रोत तेजी से कम हो रहे हैं, जिसका असर शहर के भविष्य पर पड़ सकता है। मुंबई के करीब चार गावों में रिसर्च के बाद चौका देने वाले कई तथ्य सामने आए हैं। आने वाले दशकों में पानी की बड़ी समस्या हो सकती है।’