मुंबई : बीएमसी अस्पतालों में बड़े डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी कई बार सुनने को मिलती है। दरअसल, इसके पीछे की मुख्य वजह बीएमसी द्वारा बड़े डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की छूट मिलना है। हालांकि, महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की प्रैक्टिस पर लंबे समय पहले ही रोक लगा दी गई है। जानकारों के अनुसार यहीं से कई तरह की समस्याएं शुरू हो जाती हैं। बड़े डॉक्टरों को दी जाने वाली यह राहत, गरीब मरीजों के लिए आफत बन जाती है।
क्या है नियम
बीएमसी द्वारा लेक्चरर पोस्ट के डॉक्टरों को पहले तीन साल के बाद प्राइवेट प्रैक्टिस करने की छूट मिलती थी, जिसे बाद में बढ़ाकर सात साल कर दिया गया। वहीं, असोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकते हैं। एक अधिकारी ने बताया कि यदि कोई डॉक्टर सुपर स्पेशिऐलिटी डिग्री के चलते तीन साल में ही असोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया तो वह निजी प्रैक्टिस का विकल्प चुन सकता है। निजी प्रैक्टिस नहीं चुनने पर उसे अतिरिक्त मानधन दिया जाता है। सरकार ने कुछ साल पहले किसी भी स्तर के डॉक्टर की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगा दी थी। सभी को सीधे नॉन-प्रैक्टिस का भत्ता दे दिया जाता है।
अक्सर ऐसी शिकायतें मिलती हैं कि बड़े डॉक्टरों प्राइवेट प्रैक्टिस में अधिक समय देते हैं। एक अधिकारी ने बताया कि कई बार बड़े डॉक्टर ओपीडी से भी कुछ समय बाद बाहर चले जाते हैं। ओपीडी का टाइम खत्म होने के बाद वे आकर बायोमैट्रिक उपस्थिति दर्ज करा देते हैं। कई बार वे जूनियर डॉक्टर को भी साथ ले जाने को कहते हैं। पिछले साल राज्य सरकार ने एक विशेष विजलेंस टीम बनाकर औचक निरीक्षण कर कई डॉक्टरों को अनुपस्थित बताया था। डॉक्टर बाहर प्रैक्टिस कर मोटी कमाई करते हैं। साथ ही, बीएमसी अस्पतालों से भी जुड़े रहते हैं।
बीएमसी में इस तरह की प्राइवेट प्रैक्टिस करने वालों पर नजर रखने के लिए कोई विशेष विजलेंस टीम नहीं है। इस मामले में केवल सामान्य लोगों द्वारा की गई शिकायतों के आधार पर जानकारी मिलती है। फिर इस तरह के मामलों में सुनवाई के लिए कोई टीम भी नहीं है। पहले से ही डॉक्टरों की कमी झेल रहे बीएमसी अस्पतालों में इस नियम से दिक्कतें काफी बढ़ जाती हैं।