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8 फरवरी से शुरू हो रही अयोध्या केस की सुनवाई, पूरे देश की होगी नजर

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद की 8 फरवरी से सुनवाई होने जा रही है। संभवत: शीर्ष अदालत में इस साल यह सबसे अहम मामला है, जिस पर सबसे ज्यादा लोगों की निगाहें होंगी। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने साफ किया था कि अब सुनवाई नहीं टाली जाएगी। 5 दिसंबर को हुई पिछली सुनवाई में मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि मामले की सुनवाई के लिए इतनी जल्दी क्यों है। इस मामले की सुनवाई जुलाई 2019 के बाद होनी चाहिए।सिब्बल ने कहा था कि ये कोई साधारण जमीन विवाद नहीं है बल्कि इस मामले का भारतीय राजनीति के भविष्य पर असर होने वाला है। मुस्लिम संगठनों की ओर से पेश सिब्बल और अन्य वकीलों ने कहा था कि इस मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर किया जाना चाहिए। सुनवाई जुलाई 2019 के बाद किये जाने की दलील के बाद कोर्ट के बाहर भारी बहस हुई थी। वहीं रामजन्म भूमि ट्रस्ट, राम लला व अन्य की ओर से हरीश साल्वे और सीएस वैद्यानथन व अन्य पेश हुए थे। साल्वे ने कहा था कि अपील 7 साल से पेंडिंग है। इस बात का किसी को नहीं पता कि क्या फैसला होना है। मामले में सुनवाई होनी चाहिए। कोर्ट को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि बाहर क्या परिस्थितियां है और क्या हो रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि तमाम दस्तावेज पेश हो चुके हैं और सुनवाई जल्दी होनी चाहिए। 11 अगस्त को जब मामले की सुनवाई हुई थी, तब यूपी सरकार क ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि मामले की सुनवाई के लिए जल्दी तारीख लगनी चाहिए। वहीं सुन्नी बक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश एडवोकेट कपिल सिब्बल, राजीव धवन और अनूप चौधरी आदि ने कहा था कि पहले हजारों पेज के दस्तावेज का अंग्रेजी में अनुवाद किया जाए। अदालत ने दस्तावेज के अनुवाद के लिए तीन महीने का वक्त दिया था।

तीन जजों की स्पेशल बेंच में हो रही है सुनवाई
इससे पहले 21 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने मामले को उठाया था और कहा था कि अयोध्या केस की जल्दी सुनवाई की जानी चाहिए। तब चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि हम जल्दी सुनवाई के मुद्दे पर फैसला लेंगे। फिर इस मामले में 7 अगस्त को स्पेशल बेंच का गठन किया गया। बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर हैं।

30 सितंबर 2010 का इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के जजों ने बहुमत से लिए फैसले में कहा था कि जो इलाका तीन गुंबदों के ढांचे से ठका था इसमें बीच के गुंबद का हिस्सा हिंदुओं का है। फिलहाल रामलला की मूर्ति वहीं है। सुप्रीम कोर्ट में की गई अपील
इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान व हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। वहीं दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई।

शीर्ष अदालत ने लगा दी थी HC के फैसले पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ बेंच के फैसले पर रोक लगाते हुए विवादास्पद स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। तत्कालीन जस्टिस आफताब आलम और तत्कालीन जस्टिस आरएम लोढ़ा की बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को आश्चर्यजनक बताते हुए कहा था कि हाई करो्ट ने जमीन बंटवारे का आदेश दिया जबकि पक्षकारों ने एेसी गुहार नहीं लगाई थी। फैसले के अमल पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

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