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नायडू के साथ छोड़ने के बाद क्या है बीजेपी के पास अब आंध्र में विकल्प?

हैदराबाद
‘यह एक अहम वक्त है। हमें दृढ़ता दिखानी होगी, हमें लड़ना होगा और इसे हासिल करना होगा।’ बुधवार रात तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के इस ट्वीट ने साफ कर दिया कि टीडीपी और बीजेपी के रास्ते अब अलग हो चुके हैं। इसके साथ ही आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे पर केंद्र और नायडू के बीच चल रही रस्साकशी निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई। 2014 में आम चुनाव से पहले एनडीए में शामिल होते हुए चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि नरेंद्र मोदी वक्त की जरूरत हैं। लेकिन 2017-18 के आम बजट के बाद टीडीपी प्रमुख ने कहा कि अगर उन्हें (बीजेपी को) हमारी जरूरत नहीं, तो हम नमस्ते कह देंगे। हालांकि बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान नायडू ने साफ किया कि फिलहाल वह एनडीए नहीं छोड़ेंगे।

एक ऐसे वक्त में जब लोकसभा चुनाव करीब हैं और आंध्र में भी सरकार का कार्यकाल पूरा हो रहा है, इस घटनाक्रम के बड़े सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। लोकसभा के साथ ही आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में नायडू के साथ छोड़ने के बाद बीजेपी के पास आखिर क्या विकल्प बचता है।

नायडू ने अमरावती में ऐलान करते हुए यह भी संकेत दिए के पीएम मोदी और उनके बीच संबंधों में पहले वाली बात नहीं रही। उन्होंने कहा कि फैसले की जानकारी देने के लिए मैंने प्रधानमंत्री को फोन किया लेकिन वह लाइन पर नहीं आए। यानी बीजेपी भी तकरीबन तय कर चुकी है कि उसके रास्ते अब टीडीपी से जुदा हैं। आंध्र प्रदेश की सियासत पर अगर गौर करें, तो बीजेपी के पास सबसे मजबूत विकल्प वाई एस जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के रूप में नजर आ रहा है। इसकी दो वजह है- पहला तो लोकसभा की 25 में से 9 सीटों पर जगन की पार्टी का कब्जा है और दूसरा राज्य में टीडीपी का सबसे मजबूत विकल्प जगन की पार्टी ही है।

अविभाजित आंध्र प्रदेश (तेलंगाना के साथ) में 2014 में हुए चुनाव के दौरान जगन की पार्टी ने 294 सीटों में से 70 सीटें जीती थीं। इसमें आंध्र की 175 और तेलंगाना की 119 सीटें भी शामिल थीं। टीडीपी के 32.53 फीसदी वोटों के मुकाबले वाईएसआर कांग्रेस को 27.88 फीसदी मत हासिल हुए थे। वहीं बीजेपी ने यह चुनाव टीडीपी के साथ गठबंधन करके लड़ा था और उसे 4.13 प्रतिशत वोट मिले थे। अगर बीजेपी और जगन की पार्टी के वोटों को मिला दिया जाए, तो यह आंकड़ा टीडीपी के तकरीबन बराबर ही बैठता है। वहीं पवन कल्याण की अगुवाई वाली जनसेना भी फिलहाल एनडीए में शामिल है। ऐसे में उसका वोट शेयर भी बीजेपी के लिए अहम है। जगन मोहन रेड्डी आंध्र में इन दिनों प्रजा संकल्प यात्रा (पदयात्रा) निकाल रहे हैं। करीब 9 महीने की इस यात्रा में वह राज्य के अलग-अलग हिस्सों में 3000 किलोमीटर की दूरी नापते हुए जनता से संवाद कायम कर रहे हैं। इससे पहले दिवंगत मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी ने भी इसी तरह पदयात्रा निकालकर लोगों की समस्याओं को उनके करीब जाकर देखा और सुना था। किसी नेता या पार्टी को लोगों की अपेक्षाओं के बारे में जानने के लिए ऐसी यात्राएं सियासत में अहम भूमिका निभाती रही हैं। जगन की प्रजा संकल्प यात्रा में जुट रही भारी भीड़ से उनकी जनता की नब्ज टटोलने की कुशलता नजर आ रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी आंध्र प्रदेश के विशेष दर्जे पर समर्थन का ऐलान कर चुके हैं। जगन के साथ ही पवन कल्याण की अगुवाई वाली जनसेना भी विशेष राज्य के दर्जे के लिए आंदोलन कर रही है। ऐसे में नायडू पर दबाव बढ़ रहा था। वहीं वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी के जनाधार में मामूली फर्क है। रायलसीमा के इलाके में टीडीपी के खिलाफ असंतोष की खबरें भी हैं। ऐसे में जगन से दोस्ती बीजेपी के लिए मौजूदा हालात में मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। जगन आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में कानूनी कार्रवाई का सामना भी कर रहे हैं। ऐसे में केंद्र से दोस्ती उनके लिए राहत का सबब हो सकती है। बुधवार को नायडू ने एक और ट्वीट में कहा, ‘मैं किसी से नाराज नहीं हूं। यह फैसला केवल आंध्र प्रदेश की जनता के फायदे के लिए हुआ है।’ अब नायडू का यह फैसला राज्य को फायदा पहुंचाता है या उनकी पार्टी को, इस पर आगामी चुनाव के नतीजे ही अंतिम मुहर लगाएंगे।

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