‘मुसलमान औरतें इस देश की नागरिक भी हैं…’
मुंबई
औरतों को पूरी दुनिया में भेदभाव का शिकार होना पड़ा है। यूरोप के कई देश, जो आज विकसित और बहुत सभ्य माने जाते हैं, वहां औरतों को वोटिंग का भी अधिकार बहुत बाद में मिला। भारत में औरतों के संघर्ष कहीं अधिक जटिल रहे हैं... और आज भी हैं। खास तौर पर मुस्लिम औरतों को पर्देदारी की जद में यूं गिरफ्त किया गया कि आजादी के बाद इस तबके की ज्यादातर औरतें घर की दहलीज के भीतर सिमट गईं। संसद में मुसलमानों की आवाज पहुंची भी, तो वह अमूमन पुरुष आवाज थी, जिसने तीन तलाक जैसी तमाम कुरीतियों के खिलाफ कभी कुछ नहीं किया। पेश है, इन्हीं तमाम मुद्दों के आस-पास भभारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक नूरजहां सफिया नियाज से फिराज खान की बातचीत भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) क्या है?
बीएमएमए मुसलमान औरतों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था है। जब हमने देखा कि आजादी के 60 साल बाद भी मुसलमान औरतों